Gold Prices ( Rates ) Today 2024 : डोनाल्ड ट्रम्प के जितने के बाद से सोने की कीमतों में भारी गिरावट के प्रमुख कारण

Gold Prices ( Rates ) Today डोनल्ड ट्रंप जब से चुनाव जीत चुके है उसके बाद से सोने की कीमतों में काफी गिरावट आई है । इसका मुख्य कारण ये है कि निवेशकों की उम्मीदें और बाजार की धारणा रही है । ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिकी अर्थ व्यवस्था को मजबूत करने के वादों ने शेयर बाजार और डॉलर को मजबूती दी है । जिसके कारण सोने जैसी सुरक्षित निवेश की मांग में कमी आ गई है ।

Gold Prices ( Rates ) Today क्यों सोने की कीमतों में गिरावट आई ?

  1. डॉलर की मजबूती : अमेरिकी डॉलर मजबूत होने से सोने की कीमतों पर दबाव पड़ता है । क्योंकि डॉलर में सोने खरीदना महंगा हो जाता है ।
  2. फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों की नीति : ब्याज दरें बढ़ाने की संभावना से सोने की मांग घटती है , क्योंकि निवेशक दूसरी किसी चीजों में निवेश करना ज्यादा पसंद करते है
  3. शेयर बाजार में तेजी : जब शेयर बाजार अच्छा प्रदर्शन करता है , तो निवेशक वहा ज्यादा पैसे लगाते है , जिससे सोने की कीमत प्रभावित होती है और घटती है ।
    पिछले नवंबर महीने में तीन प्रतिशत की गिरावट आई है सोने की कीमत में । अगर ऐसे ही चलता रहा तो सोने की कीमतों में और गिरावट आ शक्ति है , लेकिन ये वैश्विक आर्थिक घटनाओं , भू राजनीतिक तनाव , और निवेशकों की मांग पर निर्भर करेगा ।

पाम तेल की कीमतें बढ़ने के कारण : Gold Prices ( Rates ) Today 2024

पाम तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हाल के महीनों में काफी चर्चा का विषय रही है। यह बढ़ोतरी कई वैश्विक और क्षेत्रीय कारकों से प्रेरित है।

  1. मौसम की स्थिति:
    पाम तेल उत्पादक देशों (जैसे मलेशिया और इंडोनेशिया) में खराब मौसम और सूखे जैसी स्थितियों ने उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डाला है, जिससे आपूर्ति में कमी आई है।
  2. ऊर्जा क्षेत्र की मांग:
    पाम तेल का उपयोग बायोडीजल के उत्पादन में भी होता है। कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने पर बायोडीजल की मांग बढ़ जाती है, जिससे पाम तेल की खपत भी बढ़ती है।
  3. रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव:
    रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण सूरजमुखी तेल की आपूर्ति बाधित हुई है। इस वजह से पाम तेल की ओर झुकाव बढ़ा है, जिससे इसकी कीमतों पर दबाव बढ़ा।
  4. मजदूरी और लॉजिस्टिक्स लागत:
    महामारी के बाद श्रम की कमी और परिवहन लागत में वृद्धि ने पाम तेल उत्पादन और वितरण को महंगा बना दिया है।
  5. निर्यात प्रतिबंध और नीतियां:
    कभी-कभी पाम तेल उत्पादक देशों द्वारा घरेलू कीमतें स्थिर रखने के लिए निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जाता है, जो वैश्विक बाजार में कीमतों को बढ़ा देता है।

आगे की संभावनाएं :

पाम तेल की कीमतें निकट भविष्य में ऊंची बनी रह सकती हैं, खासकर अगर बायोडीजल की मांग बढ़ती है। प्रमुख उत्पादक देशों में आपूर्ति सीमित रहती है। अन्य खाद्य तेलों की आपूर्ति सामान्य नहीं होती।हालांकि, यदि वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार होता है और उत्पादन बढ़ता है, तो कीमतें स्थिर हो सकती हैं।

BRICS पर ट्रंप का भरोसा : संभावित कारण

  1. वैश्विक शक्ति संतुलन:
    BRICS देश वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक मजबूत भूमिका निभाते हैं। ट्रंप के लिए इन देशों के साथ सहयोग बढ़ाना आर्थिक और भू-राजनीतिक संतुलन बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।
  2. अंतरराष्ट्रीय व्यापार:
    चीन और भारत जैसे BRICS सदस्य देश बड़े उपभोक्ता बाजार हैं। ट्रंप इन देशों के साथ व्यापार समझौतों पर जोर देकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना चाह सकते हैं।
  3. डॉलर के वर्चस्व को बनाए रखना:
    हाल के वर्षों में BRICS देशों ने अपने व्यापार में डॉलर के बजाय स्थानीय मुद्राओं का उपयोग बढ़ाने की कोशिश की है। ट्रंप के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो सकता है कि अमेरिका इन देशों के साथ वित्तीय संवाद बनाए रखे।
  4. अमेरिका-चीन संबंधों में बदलाव:
    ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध देखने को मिला था। अगर ट्रंप BRICS के जरिए चीन के साथ तालमेल साधने की कोशिश कर रहे हैं, तो यह एक बड़ी नीति परिवर्तन हो सकती है।

चुनौतीपूर्ण पहलू :

BRICS देशों के बीच रूस और चीन अमेरिका के रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी माने जाते हैं। भारत और अमेरिका के संबंध अच्छे हैं, लेकिन रूस और चीन के साथ भारत के तालमेल को ध्यान में रखते हुए यह जटिल खेल हो सकता है। ट्रंप की नीति को लेकर BRICS देशों की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण होगी।

आगे की संभावना :

अगर ट्रंप BRICS के साथ जुड़ाव बढ़ाने की पहल करते हैं, तो यह अमेरिकी कूटनीति का एक बड़ा बदलाव होगा। हालांकि, इसका असर इस बात पर निर्भर करेगा कि वे इसे कैसे लागू करते हैं और BRICS के बाकी सदस्य इस पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं। अगर डोनाल्ड ट्रंप ने BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, और दक्षिण अफ्रीका) देशों के साथ जुड़ाव बढ़ाने या उन पर भरोसा जताने का कोई नया कदम उठाया है, तो यह एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बदलाव हो सकता है। परंपरागत रूप से, ट्रंप प्रशासन ने अपने पहले कार्यकाल में “अमेरिका फर्स्ट” नीति को प्राथमिकता दी थी, जो बहुपक्षीय संगठनों और गठबंधनों से दूरी बनाकर अमेरिका के हितों को सर्वोपरि रखती थी।

कच्चे तेल की कीमत 70 डॉलर तक पहुंचने के संभावित कारण :

मांग और आपूर्ति का संतुलन : वैश्विक स्तर पर आर्थिक गतिविधियां बढ़ने से तेल की मांग बढ़ सकती है। OPEC+ देशों (तेल उत्पादक देशों का समूह) द्वारा उत्पादन में कटौती या सीमित उत्पादन।

भू-राजनीतिक तनाव : मध्य पूर्व या रूस-यूक्रेन जैसे क्षेत्रों में संघर्ष से आपूर्ति बाधित हो सकती है। ईरान और अन्य तेल उत्पादक देशों पर प्रतिबंध भी कीमतों को बढ़ा सकते हैं।

डॉलर की मजबूती : कच्चे तेल की कीमतें डॉलर में होती हैं। अगर डॉलर कमजोर होता है, तो तेल सस्ता महसूस होता है, जिससे मांग बढ़ती है।

भंडारण और इन्वेंट्री : अगर तेल के भंडारण का स्तर घटता है, तो कीमतें बढ़ सकती हैं। रिफाइनरी गतिविधियों में तेजी आने से भी तेल की मांग बढ़ सकती है।

बाजार की अटकलें : निवेशकों की उम्मीदें और भविष्य की अटकलें तेल की कीमतों को ऊपर ले जा सकती हैं।

70 डॉलर की कीमत का प्रभाव :

उपभोक्ता देशों पर असर : आयात पर निर्भर देशों, जैसे भारत, के लिए यह महंगा साबित होगा और पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ सकती हैं। महंगाई पर दबाव बढ़ेगा।

ऊर्जा संक्रमण की ओर झुकाव : उच्च कीमतें वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों (सोलर, विंड) को अपनाने की गति को तेज कर सकती हैं।

तेल उत्पादक देशों को लाभ : OPEC और अन्य तेल उत्पादक देशों के लिए यह फायदे की स्थिति होगी।

अगर कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने की संभावना है या ऐसा हो चुका है, तो यह वैश्विक ऊर्जा बाजार के लिए एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। कच्चे तेल की कीमत में उतार-चढ़ाव आमतौर पर कई कारकों से प्रभावित होता है।

आगे की संभावनाएं :

अगर OPEC+ देशों ने उत्पादन में कटौती जारी रखी या वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव बना रहा, तो कीमतें 70 डॉलर के आसपास रह सकती हैं या इससे भी ऊपर जा सकती हैं। वहीं, अगर वैश्विक आर्थिक मंदी का असर बढ़ा और मांग में कमी आई, तो कीमतें नीचे आ सकती हैं। दिसंबर 2024 में कच्चे तेल की कीमतें अपेक्षाकृत स्थिर बनी हुई हैं। वर्तमान में ब्रेंट क्रूड की कीमत लगभग $80 प्रति बैरल और WTI क्रूड की कीमत $75 प्रति बैरल के आस-पास है। बाजार में यह स्थिरता मुख्यतः वैश्विक उत्पादन और मांग में संतुलन के कारण है। हालांकि, भू-राजनीतिक तनाव और भंडारण स्तरों में गिरावट से मामूली उतार-चढ़ाव देखा गया है।

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